आज आप इस आर्टिकल में जानेंगे कि जीरो का आविष्कार किसने किया? जीरो को गणित के सबसे बड़े अविष्कारों में से एक गिना जाता हैं। जीरो एक गणितीय अंक हैं जिसे सामान्य भाषा में संख्या कहा जाता हैं। वैसे तो जीरो का कोई मान नही होता लेकिन यह किसी संख्या के आगे लग जाए तो उसका मान दस गुना बड़ा देता हैं जैसे की 1 के आगे जीरो लग जाए तो 10 और 10 के आगे जीरो लग जाए 100 हो जाता है।
लेकिन अगर Zero की किसी संख्या के आगे लगाया जाए तो उसका मान वही रहता हैं जैसे की 99 के आगे 0 लगा दे तो वह 099 होगा यानी की संख्या का मान घटेगा या बढ़ेगा नहीं। अगर जीरो को किसी संख्या से गुणा किया जाए तो 0 ही आएगा और अगर 0 में किसी संख्या का भाग दिया जाए तो उत्तर अनन्त (Infinity) आएगा शून्य को अंग्रेजी में Zero के साथ Nought (UK) और Naught (US) भी कहते हैं। सरल भाषा में शून्य सबसे छोटी संख्या होती हैं जो no-negetive संख्या होती हैं लेकिन इसका कोई मान नही होता है। आइए जानते हैं कि जीरो का आविष्कार किसने किया?
जीरो का आविष्कार किसने किया था
शून्य का अविष्कार का मुख्य श्रेय भारतीय विद्वान ‘ब्रह्मगुप्त‘ को जाता हैं। क्योंकि उन्होंने 628 ईसवी में शून्य को सिद्धान्तों सहित पेश किया था। ब्रह्मगुप्त से पहले भारत के महान गणितज्ञ और ज्योतिषी आर्यभट्ट ने शून्य का प्रयोग किया था इसलिए कई लोग आर्यभट्ट को भी शून्य का जनक मानते थे। लेकिन सिद्धांत ना देने के कारण उन्हें शून्य का मुख्य अविष्कारक नही माना जाता। शून्य के अविष्कार को लेकर शुरुआत से ही मतभेद रहे हैं. क्योंकि गणना काफी पहले से की जा रही है लेकिन बिना शून्य के यह असम्भव प्रतीत होती हैं।
ज़ीरो का इतिहास
ब्रह्मगुप्त के द्वारा शून्य का आविष्कार करने से पहले भी शून्य का प्रयोग किया जा रहा था। कई प्राचीन मंदिरों के पुरातत्वो और ग्रंथों में इसे देखा गया हैं। शुरुआत में शून्य मात्र एक स्थानधारक था। लेकिन बाद में यह गणित का एक अहम भाग बन गया। कहा जाता हैं की शून्य का कॉन्सेप्ट तो काफी पुराना है लेकिन यह 5वी शताब्दी तक भारत में पूर्ण रूप से विकसित था। गणना प्रणाली को शुरू करने वाले सबसे पहले लोग सुमेर निवासी थे। Zero को भारत में शून्य कहा जाता था जो की एक संस्कृत शब्द हैं। जीरो का कॉन्सेप्ट और इसकी परिभाषा सबसे पहले 628 ईसवी में भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने दी। इसके बाद यह भारत में विकसित होता रहा। बाद में 8वी शताब्दी में शून्य अरबो जी सभ्यता में पहुचा जहा से इसे आज का रूप ‘0‘ मिला। अन्त में जाकर 12वी शताब्दी के के करीब यह यूरोप में पहुचा और यूरोपीय गणना में सुधार हुआ।
ज़ीरो के कितने नाम?
- प्राचीन समय के हिन्दू हस्तलिपियों में खाली स्थान के लिए शून्यम शब्द का प्रयोग किया जाता था।
- जब जीरो भारत से अरब पहुंचा तब वहां इसे अरबी में ‘सिफ्र’ कहा गया, इसे ही बाद में उर्दू में सिफर कहा गया जिसका मतलब होता है – कुछ भी नहीं।
- 11वीं शताब्दी में इब्राहिम बिन मीर इब्न इजरा ने जीरो के लिए गलगल लफ्ज़ का इस्तेमाल अपनी पुस्तकों में किया।
- मिस्र के राजदूत डायनोसियस ने जीरो के लिए ‘नल्ला’ शब्द का प्रयोग किया।
- इटली के गणितज्ञ फिबोनैकी ने अपनी पुस्तक The Book of Calculations में शून्य के लिए ‘जेफीरम’ शब्द का इस्तेमाल किया, बाद में इटली में ही इसे जेफिरो कहा गया तथा वेनेटियन में Zero कहा जाने लगा जो वर्तमान में भी शून्य के लिए अंग्रेजी का शब्द माना जाता है।
तो अब आप जान गए होंगे कि जीरो का आविष्कार किसने किया? शून्य का अविष्कार का मुख्य श्रेय भारतीय विद्वान ‘ब्रह्मगुप्त‘ को जाता हैं. क्योंकि उन्होंने 628 ईसवी में शून्य को सिद्धान्तों सहित पेश किया था। अगर आपको हमारा ये आर्टिकल पसंद आया हो इसे अपने सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करे।
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जीरो का आविष्कार किसने किया था? से सम्बंधित FAQ
जीरो का अविष्कार का मुख्य श्रेय भारतीय विद्वान ‘ब्रह्मगुप्त‘ को जाता हैं।
भारत देश में जीरो का आविष्कार हुआ था।
शून्य के जनक ब्रह्मगुप्त थे।